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घनश्याम की वीरता

घनश्याम की वीरता 

' तुम्हें रूपए देने हैं या नहीं ' क्रूद्ध आवाज में दीवाना भीमराव जी चिल्ला रहे थे।
॓मै जल्दी ही दे दूंगा। इस बार सूखा पड़ गया इसलिए नहीं दे पाया। आपने तो सदा मेरी सहायता ही की है । थोड़ी दया और कीजिए साहब।॑ दोनों हाथ जोड़कर गरीब कृषक कह रहा था।
॑ मैं कुछ नहीं जानता। बस मैं इतना ही कह रहा हूं कि यदि तुमने एक सप्ताह के भीतर पैसे नहीं दिए तो तुम्हारे घर की नीलामी करा दूंगा। तुम्हें रुपए इसलिए नहीं दिए थे कि उन्हें दबा कर बैठ जाओ। मूल देना तो दूर रहा, तुमने तो दो वर्ष में ब्याज तक नहीं दिया है।॔ दीवान जी चिल्लाकर बोले फिर वे क्रोध से पैर पटकते बैलगाड़ी में जाकर बैठ गए। उनके दोनों बेटे एक एक कोने में सहमे से खड़े यह सब सुन रहे थे। पिता की दृष्टि उन पर गई तो बोले-- ॑॑॑॑अरे तुम लोग क्या कर रहे हो यहां। स्कूल जाओ जल्दी से नहीं तो देर हो जायेगी।॔
    पिता का आदेश सुनकर घनश्याम और उसके भाई ने बस्ता उठाया और स्कूल की और दौड़ चले। रास्ते भर घनश्याम के मन में वही दृश्य उभरता रहा। दीवान जी का क्रोध से तमतमाया चेहरा और रौबीली आवाज जैसे उसके सामने अभी भी साकार थे। पिता का करुण चेहरा भी उसकी आंखों के आगे आ रहा था, वह करते उसे देर नहीं लगती। वह अनेक गरीब व्यक्तियों को ॠण देकर उन्हें ऐसे ही सताया करता था। की बार तो घनश्याम ने लोगों को उसकी मौत की कामना करते हुए भी सुना था।

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